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बच्चों के बौद्धिक ,भावनात्मक एवं सामाजिक विकास में किताबें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।  बच्चे जब कोई कहानी पढ़ते हैं तो उस कहानी के सन्दर्भ को अपने जीवन से जोड़कर देखते है , उन संदर्भो का विश्लेषण कर अपनी एक राय बनाते हैं अपनी कल्पनाओं को उड़ान देते हैं , खुद से संवाद करते है  या किसी समस्या का हल पा लेते हैं। इन्ही आयामों को देखते हुए दीपा बलसावर द्वारा लिखित कहानी “आक्छू!” बच्चों को तुरंत अपनी ओर खींचती है और उन्हें एक ऐसी काल्पनिक दुनिया में ले जाती है जहाँ वह यह सब अनुमान लगाने लग जाते हैं कि अगर हाथी छीकेंगा तो कैसे छीकेंगा ? उसकी आवाज़ कितनी ज़ोरदार होगी ? “हाथी” शब्द आते ही तुरंत दिमाग में एक विशालकाय गजराज की तस्वीर उभर आती है और यही से इस कहानी का जादुई असर शुरु हो जाता है और जंगल के सभी जानवरों के साथ-साथ हम (पाठक ) भी अपनी-अपनी तरह से इसका अनुमान लगाने लग जाते हैं।  यह कहानी जब मैंने अपने प्रथम कक्षा (लगभग 5-51/2 वर्ष ) के बच्चों को सुनाई तो कहानी का जादुई असर तो उन पर साफ दिख ही रहा था, साथ ही साथ big book होने के कारण बड़े -बड़े साफ़ चित्र भी कहानी के व्याकरण को समझने में, कल्पना करने में, अनुमान लगाने में मदद कर रहे थे। और वह इस कहानी को बार-बार सुनना चाह रहे थे।

शुरुआत सबसे पहले इस बड़ी सी किताब के कवर पेज से की गयी ,जिसमें कहानी के पात्रों के चित्र बने हुए थे। बच्चों ने अंदाज़ा लगाया कि यह कहानी शेर ,बंदर ,हाथी ,कौआ ,हिरन, सूअर , भैंसा आदि के बारे में होगी। जो बच्चे पढ़ना जानते थे वह कहानी का नाम पढ़ते ही समझ गये कि कहानी “छींकने ” पर आधारित है और अक्षरों को जोड़कर किताब का नाम “आक्छू” पढ़ लिया।  यही से हमारी चर्चा आगे बड़ी कि कौन, कैसे छींकता है? और सभी बच्चे अपने-अपने छींकने के तरीके बताने लगे। तब ऐसा लग रहा था कि हम सभी को जुकाम हो गया है, और एक -दो बच्चे तो सच में छींक दिए जिससे क्लास बच्चों की खिलखिलाहटों से गूंज गयी। उसके बाद कहानी का पहला चित्र दिखाया गया जिसमें एक बन्दर छींक रहा है और नर कोयल (बच्चों के लिए कौआ ) घबरा कर कहता है “बाप रे! वो तो बहुत ही ज़ोर की छींक थी। मैं तो पेड़ से गिरने ही वाला था ” और फिर बन्दर कहता है कि “अच्छा ? अगर ये तुम्हें ज़ोर की आवाज़ लगती है , ज़रा बताना तो ,हाथी की छींक कितनी तेज़ होगी ?” (बंदर ने हाथी का ही नाम क्यों लिया ? मैंने पूछा ,”क्योंकि वह बहुत बड़ा होता है,” वह बहुत ज़ोर की चिंघाड़ता है इसलिये ,” और बच्चों ने अपने -अपने अंदाज़े लगाये ,जोकि सही भी थे। इस छोटी सी चर्चा के बाद हम वापस कहानी पर आये। )  “मैं तो बस अंदाज़ा ही लगा सकता हूँ ,”नर कोयल कहता है और छींक कर दिखाता है। बस यही से इस कहानी का जादू शुरु हो जाता है और सभी बच्चे मंत्र -मुग्ध हो कहानी को देखने और सुनने लगते हैं कि अब कौन सा जानवर आएगा और छींक कर दिखाएगा।

इस किताब की सबसे अच्छी बात यही है कि यह बहुत बड़ी है और बच्चों को स्पष्ट व साफ चित्र दिखाई देते हैं और बच्चे चित्रों के द्वारा ही पूरी कहानी समझ जाते हैं। अगर इस कहानी में ज़रुरत के अनुसार संवाद होते तो भी कहानी को सरलता से समझा जा सकता था और उसका आनंद लिया जा सकता था और हमने कहानी को इसी प्रकार पहले चित्रों द्वारा फिर पढ़कर मज़ा लिया। मैंने पाया कि जब मैं चित्रों पर बात करते हुए कहानी सुना रही थी तब बच्चे कहानी से ज्यादा जुड़े हुए थे ,और अपनी -अपनी बात रख रहे थे , पर जब दोबारा पढ़कर सुनायी तो कुछ ही बच्चे सुन रहे थे बाकि अपनी बातों में या अपने -अपने काम में लग गए। शायद कहानी का रहस्य खुल गया था या

उनकी आयु के अनुसार शब्द -संवाद बहुत ज्यादा थे।  यद्यपि यह कहानी प्रथम बुक्स द्वारा उन बच्चों को ध्यान में रखकर प्रकाशित की गयी है जो सरल शब्दों को पहचानते हैं और मदद के साथ नये शब्द पढ़ सकते हैं। नये शब्दों का परिचय कराना अच्छा है पर कहानी का मज़ा भी बना रहे तो क्या ही अच्छा हो!  कहानी को पढ़ते हुए मुझे भी लगा कि कहीं -कहीं कुछ शब्द /संवाद ऐसे हैं जो न भी होते तो भी कहानी का आनंद लिया जा सकता था जैसे ,`जंगली भैंसा आया उनकी मंडली में जुड़ने को। `या फिर अंत में सभी एक ही शब्द “क्या “बोल रहे हैं पर `बाघिन दहाड़ पड़ी , रँभा उठा जंगली भैंसा , जंगली सुअर घुरघुराया  जैसे वाक्य जो जानवरों के भाव दिखाने के लिए लिखे गये है। कहानी के बहाव को रोकते हुए से प्रतीत होते हैं।

कहानी का भरपूर मज़ा लेने के बाद कहानी का समापन “स्वयं की स्वच्छता किस प्रकार रखी जाये ?” चर्चा द्वारा हुई।  कुछ बच्चों ने गर्व से बताया कि वह छींकते समय रुमाल का इस्तेमाल करते हैं, उनकी मम्मी उन्हें रुमाल देती है नहीं तो कीटाणुओं से हाथ गंदे हो जाएगे और हम बीमार पड़ जाएगे। फिर तो सभी बच्चे अपनी -अपनी सफ़ाई रखने के तरीके बताने लगे। और इस तरह बंदर की छींक से शुरु हुई कहानी स्वच्छता व साफ -सफाई के पाठ पर जाकर ख़त्म हुई। मज़ेदार बात यह रही कि यह पाठ मैंने नहीं बल्कि इस कहानी ने पढ़ाया। ज़ोर से व तमीज़ से छींक मारने के साथ -साथ स्वच्छता का पाठ भी पढ़ा दिया। यही तो इस कहानी का जादू है।

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ज़मीन हड़पने, उचित मुआवजा न मिलने, अपनी ही ज़मीन से बेघर किये जाने और कई तरह के उत्पीडन का विरोध देश के अलग-अलग हिस्सों में हो रहा है| ये खबरें कभी सुनने में आती हैं और कभी, नहीं|…

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For the impact of libraries!

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